बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: 580 सफाई कर्मचारियों को दो माह की सैलरी के साथ ₹50,000 अतिरिक्त मुआवज़ा देने का आदेश

मुंबई : मुंबई के 580 सफाई कर्मचारियों के लिए न्याय की राह लंबी और संघर्षपूर्ण रही, लेकिन आखिरकार बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) द्वारा इन कर्मचारियों को दो साल पहले तो सेवा में बहाल कर दिया गया, लेकिन बीते दो महीनों से उन्हें वेतन नहीं दिया गया था। यह मामला जब वेस्ट ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन (KVSS) के माध्यम से हाईकोर्ट पहुंचा, तो न्यायालय ने न सिर्फ बीएमसी को फटकार लगाई, बल्कि प्रत्येक कर्मचारी को ₹50,000 का अतिरिक्त मुआवज़ा देने का आदेश भी सुनाया।
न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने दो महीने की सैलरी में हुई देरी को “धक्का देने वाला” बताया और कहा कि यह स्थिति बेहद गंभीर है, क्योंकि ये कर्मचारी अब स्थायी रूप से नियुक्त हैं और फिर भी उन्हें उनके हक का वेतन नहीं मिल रहा।
गौरतलब है कि 1996 में ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इन कर्मचारियों को स्थायी किया जाए और उन्हें आर्थिक लाभ प्रदान किए जाएं। लेकिन BMC द्वारा इन आदेशों को गंभीरता से न लेते हुए सालों तक टालमटोल की गई, जिसके चलते यूनियन को दोबारा कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। 8 नवंबर 2023 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने औद्योगिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए साफ कहा था कि सभी 580 कर्मचारियों को दो महीने के भीतर वेतन का भुगतान किया जाए और उन्हें स्थायी किया जाए। बीएमसी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली और आदेश की पालना के लिए चार महीने की समयसीमा दी गई।
हालांकि, यूनियन ने कोर्ट को बताया कि अब तक 217 कर्मचारियों को तो सेवा पुष्टीकरण पत्र मिला है लेकिन वेतन नहीं। वहीं 363 अन्य कर्मचारी ऐसे हैं जिन्हें न तो पुष्टीकरण पत्र मिला और न ही सैलरी। इनमें से 77 कर्मचारी या तो दिवंगत हो चुके हैं या सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन उनके परिवारों को अब तक कोई लाभ नहीं मिला।
कोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद BMC ने एक शपथपत्र दाखिल करते हुए कहा कि 570 कर्मचारियों को जल्द ही लंबित वेतन का भुगतान किया जाएगा और मृत कर्मचारियों के कानूनी उत्तराधिकारियों को भी बकाया राशि दी जाएगी। इसके अलावा, जुलाई 2025 से सेवा में आए कर्मचारियों को अक्टूबर 2025 से नियमित वेतन मिलना शुरू होगा। हालांकि बीएमसी ने यह भी बताया कि 363 में से कई कर्मचारी अब तक नहीं मिल पाए हैं, जिनकी खोज के लिए उन्होंने सार्वजनिक विज्ञापन भी जारी किए हैं।
इस फैसले को श्रमिक वर्ग के लिए बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है। हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल प्रशासन को समय पर वेतन देने की जिम्मेदारी याद दिलाता है, बल्कि कर्मचारियों के सम्मान और अधिकारों की भी स्पष्ट रूप से रक्षा करता है।
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