कबूतरखानों से स्वास्थ्य खतरे पर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त, कबूतर की बीट से फेफड़ों की बीमारी पर मांगा मेडिकल डेटा

कबूतरखानों से स्वास्थ्य खतरे पर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त, कबूतर की बीट से फेफड़ों की बीमारी पर मांगा मेडिकल डेटा

मुंबई, 25 जुलाई — बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कबूतरखानों से होने वाले स्वास्थ्य खतरों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि कबूतरों की बीट (ड्रॉपिंग्स) से लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। अदालत ने इस संबंध में सरकारी व निजी अस्पतालों से मेडिकल डेटा मांगा है ताकि यह आंका जा सके कि कब और कितने लोग इस समस्या से पीड़ित हुए हैं।

15 जुलाई को कोर्ट ने बीएमसी को कबूतरखानों को गिराने से अस्थायी रूप से रोका था। यह रोक अगली सुनवाई तक जारी रहेगी। न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने कहा कि यह मामला विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि जनस्वास्थ्य की सुरक्षा के रूप में देखा जाए, खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए।

कोर्ट ने कहा, "मानव स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता।" अदालत ने यह भी कहा कि कबूतरों के इकट्ठा होने से एक "गंभीर सामाजिक चिंता" पैदा हो गई है।

कोर्ट ने बॉम्बे हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत राजन से विशेषज्ञ राय मांगी है। डॉ. राजन ने 2018 में इसी मुद्दे पर कोर्ट को इनपुट दिए थे। कोर्ट ने सरकारी और निजी अस्पतालों से आंकड़े मांगे हैं कि कितने लोगों को कबूतरों की बीट से संबंधित श्वसन रोगों का इलाज मिला है। कोर्ट ने कहा, "यह महामारी न सही, लेकिन एक संभावित महामारी हो सकती है। डेटा मंगवाइए, जिससे स्थिति की गंभीरता पता चले।"

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने कोर्ट को जानकारी दी कि वे बीएमसी को सुझाव देंगे ताकि पक्षियों को नुकसान न हो। कोर्ट ने बोर्ड को अपने सुझाव बीएमसी कमिश्नर को सौंपने की अनुमति दी।

कोर्ट ने बीएमसी कर्मियों द्वारा कबूतरों को भगाने के लिए पटाखों के इस्तेमाल की शिकायतों पर नाराज़गी जताई। कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि ऐसा किया जा रहा है तो तुरंत रोका जाए।

कोर्ट में यह मामला मुंबई की तीन पशु प्रेमियों — पल्लवी पाटिल, स्नेहा विसारिया और सविता महाजन — द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान उठा। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि बीएमसी ने बिना किसी वैधानिक अधिकार के 3 जुलाई से कबूतरखानों को तोड़ना शुरू कर दिया है, जो कि Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 का उल्लंघन है।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता रत्नाकर पाई के पुत्र आनंद पाई ने हस्तक्षेप याचिका दाखिल की। उन्होंने कहा कि उनके पिता की मृत्यु फेफड़ों की बीमारी से हुई, जो लंबे समय तक कबूतर बीट के संपर्क में रहने से हुई थी। कोर्ट ने कहा कि यह एक प्रत्यक्ष उदाहरण है कि कबूतरखानों से जनस्वास्थ्य को कितना गंभीर खतरा हो सकता है।

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