2008 मालेगांव ब्लास्ट केस: एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी किया, सबूत और कानूनी प्रक्रिया में खामियों का हवाला

2008 मालेगांव ब्लास्ट केस: एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी किया, सबूत और कानूनी प्रक्रिया में खामियों का हवाला

मुंबई: 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में विशेष एनआईए अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सबूतों की विश्वसनीयता साबित करने में नाकाम रहा और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन भी सही ढंग से नहीं किया गया।

विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने अपने 1036 पन्नों के फैसले में कहा, "शक को कानूनी प्रमाण का स्थान नहीं दिया जा सकता। अभियोजन पक्ष की गवाहियों में गंभीर विरोधाभास और असंगतियां हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।"

अदालत ने पाया कि जिन वॉयस सैंपल्स का उपयोग फॉरेंसिक जांच में किया गया, उन्हें मजिस्ट्रेट की निगरानी में एकत्र नहीं किया गया था, जो कि कानूनन आवश्यक है। इसके अलावा, जब्त की गई वस्तुएं जैसे कैसेट और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की "चेन ऑफ कस्टडी" स्थापित नहीं की जा सकी।

अदालत ने यह भी बताया कि आरोपी सुधाकर द्विवेदी का लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सील नहीं किए गए थे और वे 24 घंटे से अधिक समय तक एटीएस अधिकारियों के पास बिना सुरक्षा के रहे, जिससे छेड़छाड़ की आशंका बढ़ गई।

फॉरेंसिक रिपोर्ट में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के नियमों का पालन नहीं किया गया था। रिपोर्ट देने वाले विशेषज्ञ पीडब्ल्यू-284 सुनील कोली की योग्यता पर भी अदालत ने सवाल उठाए। कोली ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने केवल पांच दिन का वॉयस आइडेंटिफिकेशन कोर्स किया था और उन्हें इसमें औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला था।

मुख्य विशेषज्ञ हीना डोडिया, जिन्होंने तीन रिपोर्टें दी थीं, उन्हें अभियोजन पक्ष ने गवाह के रूप में पेश नहीं किया, जिससे आरोपियों को जिरह का अधिकार नहीं मिल सका।

अदालत ने यह भी पाया कि फोन टैपिंग के लिए आवश्यक अनुमति (टेलीग्राफ नियम 419A के तहत) किसी वरिष्ठ अधिकारी से नहीं ली गई थी। साथ ही, इंटरसेप्टेड कॉल्स की ट्रांसक्रिप्ट तैयार करने के लिए जिस सर्विलांस रजिस्टर का हवाला दिया गया, वह भी पेश नहीं किया गया।

न्यायाधीश लाहोटी ने कहा, "अभियोजन पक्ष साजिश या आरोपियों की संलिप्तता को संदेह से परे साबित नहीं कर सका," जिसके चलते अदालत ने सभी सात आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया।

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह मामला कई वर्षों तक सुर्खियों में रहा और इसकी जांच एटीएस और बाद में एनआईए ने की थी।

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