मराठा आरक्षण आंदोलन: देवेंद्र फडणवीस ने संभाली कमान, डिप्टी सीएम रहे दूर

मराठा आरक्षण आंदोलन: देवेंद्र फडणवीस ने संभाली कमान, डिप्टी सीएम रहे दूर

मुंबई | 3 सितंबर 2025 : मराठा आरक्षण को लेकर बीते चार दिनों में मुंबई में जो कुछ हुआ, वह महाराष्ट्र की राजनीति में एक अभूतपूर्व स्थिति बनकर उभरा। आज़ाद मैदान में जमा हजारों आंदोलनकारियों के बीच जब सरकार की भूमिका पर सवाल उठने लगे, तब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मोर्चा संभाला। जबकि दोनों उपमुख्यमंत्री — एकनाथ शिंदे और अजित पवार — इस पूरे घटनाक्रम में लगभग अनुपस्थित दिखाई दिए।

दरअसल, मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल और फडणवीस के बीच की तनातनी कोई नई नहीं है। इसकी जड़ें सितंबर 2023 में जलना के अंतरवाली सराटी में हुए लाठीचार्ज से जुड़ी हैं, जब पुलिस कार्रवाई के बाद सरकार पर जातिगत भेदभाव के आरोप लगे थे। उस समय जरांगे पाटिल ने खुलकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था। बाद में जब जून 2022 से दिसंबर 2024 तक एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे, तब सरकार ने कुछ हद तक आंदोलनकारियों को शांत करने में सफलता पाई थी, जैसा कि जनवरी 2024 में नवी मुंबई से आंदोलनकारियों की वापसी के दौरान देखा गया।

लेकिन मौजूदा घटनाक्रम ने स्थिति फिर से बिगाड़ दी। जब आंदोलनकारियों ने मुंबई कूच किया, तब मराठा आरक्षण समिति के प्रमुख राधाकृष्ण विखे पाटिल शिर्डी में थे। उपमुख्यमंत्री शिंदे अपने गृहक्षेत्र ठाणे में व्यस्त थे और मुश्किल से एक-दो बार मीडिया से बात की। वहीं, अजित पवार पुणे में थे और उन्होंने मीडिया से कहा कि ज़रूरत पड़ी तो मुंबई आएंगे। इस उदासीनता ने सरकार की नीयत और तैयारी पर सवाल खड़े कर दिए।

ऐसे में रविवार को देवेंद्र फडणवीस ने अचानक कमान संभाल ली। उसी दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लालबागचा राजा के दर्शन के बाद फडणवीस और शिंदे के साथ एक बंद कमरे में बैठक की। सोमवार को जब बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आंदोलन को लेकर याचिका दायर हुई, तब सरकार ने पहले तो विरोध जताया, लेकिन जल्द ही रुख बदल लिया।

इसी दिन मुख्यमंत्री ने मंत्रियों की एक बैठक बुलाई, जिसमें न शिंदे उपस्थित थे, न ही पवार। कोई औपचारिक कैबिनेट बैठक नहीं हुई। जरांगे पाटिल को आश्वासन देने और जरूरी सरकारी निर्णय (GRs) जारी करने की प्रक्रिया भी अकेले फडणवीस ने ही शुरू की। इन निर्णयों का प्रभाव भविष्य ही बताएगा, लेकिन जिस तरह से शिंदे और पवार इस पूरे मामले से दूरी बनाए रहे, उससे सियासी हलकों में कई तरह की अटकलें शुरू हो गई हैं।

मंगलवार को सरकार ने स्थिति को संभालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और राधाकृष्ण विखे पाटिल के नेतृत्व में मंत्रियों का एक दल जरांगे पाटिल से मुलाकात के लिए भेजा गया। हाईकोर्ट ने भले ही आंदोलनकारियों के आचरण पर सवाल उठाए हों, लेकिन सरकार ने अपना रुख नरम किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जरांगे पाटिल की जनसमर्थन क्षमता किसी भी राजनेता से ज्यादा है, और उन्हें नजरअंदाज़ करना एक राजनीतिक भूल होती।

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ी बात यह रही कि जहां एक ओर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस खुद आगे आकर हालात पर नियंत्रण पाने में जुटे रहे, वहीं दोनों उपमुख्यमंत्री किनारे दिखाई दिए। इससे न सिर्फ सरकार की आंतरिक राजनीति उजागर हुई, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया कि मराठा आंदोलन अब केवल आरक्षण की मांग नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की सत्ता की धुरी को भी चुनौती देने वाला विषय बन चुका है।

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