अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कॉन्फडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय मंत्री शंकर ठक्कर ने बताया पिछले करीब 3 दशकों से दुनिया के सबसे सस्ते खाने के तेलों में में शुमार होने वाले पाम तेल ने अपना यह स्थान गवा दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में पाम तेल के उत्पादन में कटौती एवं बायोडीजल बनाने में बढ़ रहे इस्तेमाल के कारण दूसरे तेलों के मुकाबले कीमतें काफी बढ़ने के कारण आम लोगों के खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले तेलों में इसे दूर कर दिया है।दुनिया के सबसे सस्ता खाद्य तेल के नाम से जाने जाने वाले पाम तेल के उत्पादन में गिरावट आ गई है। कई अन्य विकल्पों के मार्केट में आ जाने की वजह से पाम ऑयल अब उस स्थिति में नहीं है, जैसा पहले हुआ करता था।आज पाम ऑयल प्रीमियम दामों पर बिकने लगा है।

सोयाबीन, सूरजमुखी और रेपसीड यानी कैनोला जैसी फसलों की कटाई सीमित होती है और पाम ऑयल की साल भर कटाई की जाती है। इसके अलावा भी, पाम के लिए कम जमीन की जरूरत होती है, जिससे यह आमतौर पर सस्ता भी रहता है।दुनियाभर को होने वाली पाम तेल की सप्लाई का 85% हिस्सा इंडोनेशिया और मलेशिया से पूरा होता है और अब ये देश चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। छोटे किसान पुराने पेड़ों को काटने और नए पेड़ लगाने से हिचकिचा रहे हैं क्योंकि नए पेड़ों से फल आने में चार से पांच साल लगते हैं, जबकि सोयाबीन के लिए यह अवधि लगभग छह महीने है।लैटिन अमेरिका जैसे देशों में इस वर्ष बेहतर फसल संभावनाओं के चलते सोयाबीन तेल की कीमतें 9% कम हुई हैं। हालांकि, पाम तेल की अनूठी क्वालिटी की वजह से निकट भविष्य में बहुत बड़े बदलाव की संभावना कम है। इसलिए पाम ऑयल कई क्षेत्रों के लिए आकर्षक बन जाता है।पाम ऑयल की जगह दूसरे खाद्य तेलों का इस्तेमाल करने में कुछ चीजों में नहीं होता है। जिन में खासकर नमकीन,कुकीज, रेस्तरां और होटल जैसे प्रमुख व्यापारी तुरंत पाम तेल की जगह दूसरे तरह के तेल यानी अन्य विकल्पों के बारे में नहीं सोच सकते। हालांकि घरेलू खपत में कुछ असर देखने को मिल सकता है। इंडोनेशिया की बायोडीजल मांग भी पाम तेल की कीमतों को सपोर्ट करती है। पाम ऑयल अक्सर सभी जगह उपलब्ध रहने वाले पिज्जा और आइसक्रीम से लेकर शैम्पू और लिपस्टिक तक में पाया जाता है। पशु आहार निर्माता भी इसे एक घटक के रूप में उपयोग करते हैं, जबकि कुछ देश इसे जैव ईंधन (biofuels) में बदलते हैं।

शंकर ठक्कर ने आगे कहा इन सभी कारणों को देखते ते हुए पिछले 30 साल से आम उपभोक्ता के खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाला पाम तेल उनकी थाली से दूर हो रहा है।