टिलक नगर: 18 वर्षों से इंतज़ार में बैठे निवासी, अधूरी पड़ी पुनर्विकास योजना

मुंबई, 16 मई: मुंबई के टिलक नगर इलाके की शंकर छाया को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के 24 निवासी पिछले 18 वर्षों से अपने नए घरों का इंतजार कर रहे हैं। 74 वर्षीय अरविंद बुढ़कर समेत अन्य निवासी 2007 में फ्लैट खाली करने के बाद अब तक वादे के मुताबिक अपने नए घर नहीं पा सके हैं।
सोसाइटी और डेवलपर श्रुति राज एंटरप्राइज के बीच हुए विकास समझौते (दिनांक 23 अक्टूबर, 2007) के अनुसार, 15 मंजिला इमारत तीन वर्षों के भीतर पूरी होनी थी। लेकिन लगभग दो दशक बाद केवल 11 मंजिलें ही बनी हैं, और पिछले दो वर्षों से कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ है।
सोसाइटी के अध्यक्ष ने डेवलपर को एक कड़ा पत्र लिखते हुए तत्काल कब्जा देने की मांग की है। इस पत्र में बताया गया है कि प्रत्येक सदस्य को किराया, दलाली, परिवहन और कॉर्पस फंड के रूप में करीब ₹20 लाख का बकाया है। पत्र डेवलपर के एमडी चिन्णैया ई. गौड़ा को संबोधित है और इसमें कहा गया है कि डेवलपर 31 मार्च की अंतिम समयसीमा को भी पूरा करने में असफल रहा।
पत्र में यह भी लिखा है, "हममें से कई किराए के मकानों में रह रहे हैं, कुछ सदस्य अब इस दुनिया में नहीं हैं।" निवासियों ने चेतावनी दी है कि RERA की अंतिम समयसीमा 25 दिसंबर 2025 को समाप्त हो रही है और वे अब समझौते को आगे नहीं बढ़ाएंगे।
2010 में बुढ़कर ने 325 वर्गफुट का फ्लैट यह वादा लेकर खाली किया था कि उन्हें 550 वर्गफुट का नया फ्लैट और मासिक किराया मिलेगा। लेकिन यह वादा अब तक अधूरा है। उन्होंने वर्षों की प्रतीक्षा के बाद महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का दरवाजा खटखटाया, जिसने डेवलपर के खिलाफ फैसला सुनाते हुए फ्लैट देने, देरी का मुआवजा चुकाने और सभी बकाया क्लियर करने के निर्देश दिए।
हालांकि, डेवलपर ने इस फैसले को नेशनल कंज़्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (NCDRC) में चुनौती दी, जहां यह मामला पिछले तीन वर्षों से लंबित है।
इस पूरे मामले ने मुंबई में हो रहे पुनर्विकास प्रोजेक्ट्स की पारदर्शिता और नियमन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन लोगों ने बेहतर जीवन की आशा में अपना घर छोड़ा, वे अब किराए के मकानों में या अदालतों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। टिलक नगर की यह कहानी सिस्टम की विफलता और आम नागरिकों की उपेक्षा का प्रतीक बन चुकी है।
What's Your Reaction?






