26/11 की गवाह देविका की साहस भरी कहानी: नौ साल की उम्र में दी गवाही

मुंबई- देविका रोटावन, 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों की एक जीवित गवाह और वह महत्वपूर्ण गवाह, जिसने अदालत में आतंकवादी अजमल कसाब की पहचान की, आज भी उस रात को याद करती हैं जिसने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। सिर्फ नौ साल की उम्र में, देविका 26 नवंबर, 2008 को छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) पर हुई उस अफरातफरी के बीच फंस गईं। हमले के दौरान एक गोली उनके पैर में लगी, जिससे उन्हें स्थायी चोट पहुंची। यह चोट आज भी उन्हें परेशान करती है, खासकर ठंड के महीनों में जब दर्द और बढ़ जाता है। 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों में नौ साल की उम्र में गवाही देकर अजमल कसाब को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली देविका की कहानी आज भी साहस और न्याय की मिसाल है। उनकी बहादुरी और संघर्ष ने न्याय के लिए एक नई दिशा तय की, लेकिन इस रास्ते में उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया। "मैंने कसाब को पहचाना, न्याय के लिए" देविका ने अपने पिता के साथ कसाब और अन्य आतंकवादियों को हमले के दौरान देखा था। उन्होंने अदालत में गवाही देकर कसाब की पहचान की, जो हमलों के दौरान जिंदा पकड़ा गया था। "मैंने सिर्फ इतना किया कि उसे पहचान लिया और न्याय दिलाने में मदद की," देविका ने कहा। उनकी गवाही ने कसाब को फांसी की सजा दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
घाव जो अब भी हरे हैं हमले के दौरान घायल हुई देविका को एक महीने से अधिक समय तक अस्पताल में रहना पड़ा। इस त्रासदी ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। इलाज के बाद वह राजस्थान स्थित अपने गृहनगर लौटीं, लेकिन वह रात और उस दिन का दर्द आज भी उनके साथ है। संघर्ष भरा सफर अपने जीवन में अनेक मुश्किलों का सामना करने के बाद देविका वर्तमान में बांद्रा ईस्ट, मुंबई में एक किराए के मकान में रहती हैं। 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया था कि उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग योजना के तहत मकान आवंटित किया जाए, लेकिन अब तक यह सपना अधूरा है। सरकारी मदद और उम्मीदें देविका को हमले के बाद ₹3.26 लाख का मुआवजा मिला था, और तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनके इलाज के लिए ₹10 लाख की व्यवस्था की थी। हालांकि, सरकार द्वारा आवंटित मकान अभी तक उन्हें नहीं मिला है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का सपना अपनी मां को 2006 में खोने वाली देविका का सपना है कि वह एक अधिकारी बनकर आतंकवाद से लड़ाई में अपना योगदान दें। "मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, और अब मेरा लक्ष्य है कि उन निर्दोष लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करूं, जो आतंकवाद का शिकार होते हैं," उन्होंने कहा। देविका का संदेश देविका की कहानी साहस, संघर्ष और उम्मीद का प्रतीक है। उनकी यात्रा उन लाखों लोगों को प्रेरित करती है, जो अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। यह कहानी यह भी याद दिलाती है कि कैसे एक बच्ची ने न केवल अपने जीवन की लड़ाई लड़ी, बल्कि देश को न्याय के लिए प्रेरित किया।
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